शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

लबादे !

काश ! 
हम सीधे सादे 
अपने मूल रूप में, जी पाते , 
शायद हम 
विवशता में ओढ़ते हैं खोल 
तरह तरह के लबादे ! 
जब हम मूल रूप में होते हैं 
शायद ,हमें हमारा 
नंगेपन का बोध सालता है ! 
आदमी अपने घिनोनेपन पे 
परदे डालता है ! 

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