काश !
हम सीधे सादे
अपने मूल रूप में, जी पाते ,
शायद हम
विवशता में ओढ़ते हैं खोल
तरह तरह के लबादे !
जब हम मूल रूप में होते हैं
शायद ,हमें हमारा
नंगेपन का बोध सालता है !
आदमी अपने घिनोनेपन पे
परदे डालता है !
हम सीधे सादे
अपने मूल रूप में, जी पाते ,
शायद हम
विवशता में ओढ़ते हैं खोल
तरह तरह के लबादे !
जब हम मूल रूप में होते हैं
शायद ,हमें हमारा
नंगेपन का बोध सालता है !
आदमी अपने घिनोनेपन पे
परदे डालता है !
utam.
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