रविवार, 21 दिसंबर 2014

भ्रमित तू

आज मन मेरा उदास है ,
ढली उम्र के मन का प्रवास है !
यौवन मौजों का भटकाव भर ,
स्थायित्व कूलों के पास है !
भावना ,भंवर की डगमगाती नांव ,
जिंदगी आस्था है विश्वास है !
अंतहीन मंजिल का यह शरीर,
सराय सा ,अस्थाई आवास है !
जमीं पे लग रहा जो खेल ,
उसका मंच तो आकाश है !
अज्ञात के भय से भयभीत सब ,
अपने पर व्यंग है उपवास है !
ख़ुशी ,उसकी कल्पना ,संसार गढ़ लेना ,
एक जिंदगी जीने का प्रयास है !
'सत्य' उजाले कि की पीठ अँधेरा ,
भ्रमित तू खोजता प्रकाश है !...

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