रविवार, 29 नवंबर 2015

"भौचक जनता "

जो लोग
बेईमानी का दूध पीकर बड़े हुए हैं 
उन्होंने सुनी है बचपन से 
हिंसा भरी लोरियाँ 
बचपन से खेले हैं 
मक्कारी के खिलोनो से 
हैवानियत के मदरसे में पढ़े हैं 
धूर्तता का पाठ 
जहाँ 
स्वार्थ में डॉक्टरेट किये मास्टरों ने 
लिखना सिखाएं हैं 
चाकुओं से अक्षर 
बड़े होते ही हो गए वे भर्ती 
भेदभाव के कॉलेज में /
जात पात धर्म का लेकर सहारा ,
पाई हैं डिग्रीयां 
जीवन  में पाई है ,सफलता -
धन कॉल गर्ल 
भ्रष्टाचार ,हिंसा से 
जब वे ही लोग 
कानून व् नियम की बात करते हैं 
जनता भौचक रह जाती है 
कुछ समझ नहीं पाती है 
तालिया बजती है //










शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

अहिंसा क्या कर पाती है?

मोह लोभ काम से
विक्षिप्त समाज में
अहिंसा क्या कर पाती है /
शांति के नाम पर
चादर तान सो जाती है /
जो कल्पना से संसार में जीते हैं ,
जीते रहें ,
हम झूठे आदर्शों के बोझ ,
कब तक सहें /
यूँ  तो कितने ही अवतार आये
कौन क्या कर पाये
अमर ,
राम कृष्ण ही हो पाये /
जो भी दुष्ट दमन को खड़ा होता है ,
वही अनुकरणीय बड़ा होता है /
अनुनय विनय से कब दुष्टता रूकती है /
वह शास्त्र से नहीं ,
शस्त्र से झुकती है /
उन छद्म अहिंसकों से ,
जो अपनी नपुंसकता छुपाते हैं /
हिंसक अच्छे हैं ,
जो मानवता बचाते  हैं /
यह मात्र विद्रोह नहीं
विचारणीय सवाल है ,
सतयुग से अब तक का इतिहास ,
इसकी मिसाल है /

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

कुछ चतुष्पदियाँ

मै भटका ज़िन्दगी भर ,हमेशा दुविधा रही
सुविधा थी सुख नहीं था ,सुख मिला सुविधा गई!
राह अपनी तू चला चल ,किसी से भी पथ न पूछ
पैगम्बरों में भी ,आदि से ,यहाँ पर स्पर्धा रही !!
रह गया स्तब्ध मौन ,जीत गयी आज अभिव्यक्ति
चढ़ रहा चिंता चिंतन ,जीत गयी अंध भक्ति !
अतीत का ये प्रश्न मुझे ,आज तक भी काँचता है
कुरुक्षेत्र में सत्य जीता ,अथवा जीती थी शक्ति !!
ज़िन्दगी जी रहा या  ढो रहा हूँ मै
उम्र के साथ जग में खो रहा हूँ मै !
शांत एकांत में व्यथित जीवन प्रश्नो से ,
मुस्कान अधरों पर ,ह्रदय से रो रहा हूँ मैं !!(नवीनतम पुस्तक"काव्य कनिका " से )