हेतुहेतुमदभाव-एक अनुभव युक्त सत्य है !
अतः आदमी ने अपनी कल्पना से
जब गढ़ा चमत्कारी ईश्वर
जिसे सभी मानें
वन्दनीय /पूजनीय /प्रशंसनीय
तब स्वाभाविक ही अपने कार्य -कारण में
सामंजस्य / समीकरण हेतु
आदमी की अपेक्षा भी
चिचोरी की हो जाती है !
चमत्कारी कहलाये जाने की लालसा में
उसकी कर्मठता / जूझने की क्षमता
भाग्यवाद में खो जाती है !!
अतः आदमी ने अपनी कल्पना से
जब गढ़ा चमत्कारी ईश्वर
जिसे सभी मानें
वन्दनीय /पूजनीय /प्रशंसनीय
तब स्वाभाविक ही अपने कार्य -कारण में
सामंजस्य / समीकरण हेतु
आदमी की अपेक्षा भी
चिचोरी की हो जाती है !
चमत्कारी कहलाये जाने की लालसा में
उसकी कर्मठता / जूझने की क्षमता
भाग्यवाद में खो जाती है !!
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