रविवार, 21 दिसंबर 2014

"कौन कहेगा "

तुम्हें निमंत्रण भेज दिया यदि ,
बिना बुलाये आने को फिर कौन रहेगा !...........
जान बूझ कर नहीं लिखा है ,
स्मृति को तुम दोष न देना !
मेरे पहले ही अनुभव की ,
उत्सुकता को कुचल न देना !
व्यवहारों से नहीं आंकना 
अपनेपन के इस परिचय को ,
अपनेपन पर नहीं अन्यथा ,
यहाँ कौन विश्वास करेगा !................
नींव यदि विश्वास नहीं है ,
हैं वे कैसे रिश्ते नाते !
केवल नए नए परिचय में ,
प्रचलित नियम निभाए जाते !
अगर तुम्हारे भी शब्दों को ,
मैं शंकित भावों से परखूँ
मेरी वाणी को बतलाओ ,
स्वर देने को कौन रहेगा ,.......
धरा निमंत्रण नहीं भेजती ,
स्वागत -आगत अलग बात है ,
तन का आना क्या आना है ,
मन का आना अलग बात है !
अगर तुम्हारे भी आने पर ,
द्वार खोलकर रखूँगा मैं ,
दस्तक दरवाजे पर देकर ,
आने को फिर कौन कहेगा !....................

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