रविवार, 21 दिसंबर 2014

मिला न कोई मित्र मुझे

सुख-सुविधाओं भोगों का ही दिखलाया है चित्र मुझे ,
अरे मोक्ष का पथ बतलाता मिला न कोई मित्र मुझे ,
राम बनाकर वन को भेजे ,ऐसे कितने पिता मिले ,
पहन के वल्कल साथ चले ,मिला न ऐसा मित्र मुझे ,
तरह तरह की खाल ओढ़कर ,चिडिया घर में बैठे लोग !
में भौचक्का देख रहा था ,कहने लगे विचित्र मुझे ,
खेल खेल में श्रापित होकर ,मैं मृत्यु को प्राप्त हुआ ,
कोई भगीरथ गंगा लाकर ,करदे आज पवित्र मुझे !
आज खेत को बागड़ खाती,कैसा युग का परिवर्तन ,
छल प्रपंच के ज्ञानी-ध्यानी ,समझाते हैं चरित्र मुझे !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें