शिशु समान जो कर रहे ,जग में आ व्यवहार
उन्हें नहीं अवसाद है ,नहीं कोई त्यौहार !
पाने की आशा संजो ,जो करते हैं त्याग
अपरिग्रह को मूढ़ जन ,कहते हैं वैराग !
जो रहता है एक रस ,सभी इन्द्रिय ज्ञान
दूर हुई बाधा सभी ,दूर हुए सब त्राण !
सुना न पुस्तक से पढ़ा, बुद्धि किया प्रत्यक्ष
स्वानुभूति का विषय ,अनुभव किया प्रत्यक्ष !
उन्हें नहीं अवसाद है ,नहीं कोई त्यौहार !
पाने की आशा संजो ,जो करते हैं त्याग
अपरिग्रह को मूढ़ जन ,कहते हैं वैराग !
जो रहता है एक रस ,सभी इन्द्रिय ज्ञान
दूर हुई बाधा सभी ,दूर हुए सब त्राण !
सुना न पुस्तक से पढ़ा, बुद्धि किया प्रत्यक्ष
स्वानुभूति का विषय ,अनुभव किया प्रत्यक्ष !
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