रविवार, 21 दिसंबर 2014

स्वानुभूति

शिशु समान जो कर रहे ,जग में आ व्यवहार 
उन्हें नहीं अवसाद है ,नहीं कोई त्यौहार ! 

पाने की आशा संजो ,जो करते हैं त्याग 
अपरिग्रह को मूढ़ जन ,कहते हैं वैराग ! 

जो रहता है एक रस ,सभी इन्द्रिय ज्ञान 
दूर हुई बाधा सभी ,दूर हुए सब त्राण ! 

सुना न पुस्तक से पढ़ा, बुद्धि किया प्रत्यक्ष
स्वानुभूति का विषय ,अनुभव किया प्रत्यक्ष !

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