रविवार, 21 दिसंबर 2014

"अस्तित्व चबा जायेगा "

लो ढाल दो 
फौलाद की भांति 
इंसान को कारखानों में 
सभ्यता के नाम पर
ब्रेन वाश कर 
बुद्धि की जो बात करे 
उसकी तलाश कर 
लटका दो सूली पर
चूंकि ,
आज सबका अस्तित्व टिका है
कुछ मनचलों की
तूलियों पर,
यदि
कहीं बुद्धि शेष रह गयी
बहुत चालाक है
किसी भी वेश रह गयी
इन मनचलों को जीने न देगी
खून को मधु समझ
पीने न देगी ,
बुद्धि न्याय की पक्षपाती है
तुम स्वार्थी अन्यायी हो
आदमी को आदमी की भांति
जीने नहीं देते
अपने ही कर्म फल का अमृत
पीने नहीं देते
इश्वर विश्वास है
जो पूछते हैं कहाँ है
उन्ही के सामने आ जायेगा
सुदर्शन घूमेगा
इनका अस्तित्व चबा जायेगा !

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