रविवार, 21 दिसंबर 2014

मैं पागल हूँ

मैं पागल हूँ पागलपन के गीत सुनाता हूँ
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
रक्त से जिनके सिंचित हो
यह वृक्ष बना फिर बीज बना !
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैंवह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
में मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ
खप्पर भरके पागलपन के गीत रचाता हूँ
मैं परवाह नहीं करता यह ,
लोग मुझे क्या कहते हैं !
जनसमूह उफनाती नदियाँ
कितने बहते निरते हैं
शक्ति से विश्वास हटा है
जब गरीब की कुटिया में
नियम मान्यता ,धर्मं कर्म जब
बांध धरे जग गठिया में
खंड-खंड जब बिखर रही हो सृष्टि में युग का सपना
आकाश भूमि से युग चेतना की शक्ति जगाता हूँ
मैं पागल हूँ पागलपन के गीत बनाता हूँ !
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
होकर रक्त से जिनके सिंचित हो ,
यह वृक्ष बना फिर बीज बना
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैं वह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
मैं मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ ...
खप्पर भरता पागलपन के गीत रचाता हूँ .......

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