मैं पागल हूँ पागलपन के गीत सुनाता हूँ
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
रक्त से जिनके सिंचित हो
यह वृक्ष बना फिर बीज बना !
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैंवह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
में मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ
खप्पर भरके पागलपन के गीत रचाता हूँ
मैं परवाह नहीं करता यह ,
लोग मुझे क्या कहते हैं !
जनसमूह उफनाती नदियाँ
कितने बहते निरते हैं
शक्ति से विश्वास हटा है
जब गरीब की कुटिया में
नियम मान्यता ,धर्मं कर्म जब
बांध धरे जग गठिया में
खंड-खंड जब बिखर रही हो सृष्टि में युग का सपना
आकाश भूमि से युग चेतना की शक्ति जगाता हूँ
मैं पागल हूँ पागलपन के गीत बनाता हूँ !
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
होकर रक्त से जिनके सिंचित हो ,
यह वृक्ष बना फिर बीज बना
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैं वह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
मैं मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ ...
खप्पर भरता पागलपन के गीत रचाता हूँ .......
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
रक्त से जिनके सिंचित हो
यह वृक्ष बना फिर बीज बना !
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैंवह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
में मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ
खप्पर भरके पागलपन के गीत रचाता हूँ
मैं परवाह नहीं करता यह ,
लोग मुझे क्या कहते हैं !
जनसमूह उफनाती नदियाँ
कितने बहते निरते हैं
शक्ति से विश्वास हटा है
जब गरीब की कुटिया में
नियम मान्यता ,धर्मं कर्म जब
बांध धरे जग गठिया में
खंड-खंड जब बिखर रही हो सृष्टि में युग का सपना
आकाश भूमि से युग चेतना की शक्ति जगाता हूँ
मैं पागल हूँ पागलपन के गीत बनाता हूँ !
मैं तो खंडित प्रतिमा पर ही अर्ध्य चढ़ाता हूँ !
कैसे विस्मृत उनका जीवन ,
जिनसे यह इतिहास बना
होकर रक्त से जिनके सिंचित हो ,
यह वृक्ष बना फिर बीज बना
बलिदानों से लिखे हुए जो
मैं वह शिलालेख पढता हूँ
पुरातत्व की रक्षा करने ,
मैं जीवन अर्पण करता हूँ
मैं मरघट का वासी हूँ शमशान जगाता हूँ ...
खप्पर भरता पागलपन के गीत रचाता हूँ .......
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