रविवार, 21 दिसंबर 2014

"भूख"

मै ठिठक गया ,
चारोँ ओरे खड़ी भीड़ के मध्य ,
देखकर एक बच्ची को.
विचार से सयानी ,
देह से कच्ची को .
पंद्रह फुट ऊँची रस्सी पर,
एक बांस के सहारे ,
निर्द्वंद चलते हुए ,
संतुलन के सहारे ,
मौत को छलते हुए ,
बांस के एक छोर बंधी हुई भूख है .
दूसरे छोर पर ,
लटक रही मौत है .
साधुवाद देता हूँ,
उसके इस विश्वास को ,
कि जो -
आसमान में पेट और मौत का ,
संतुलन नहीं बना पाते.
वे ज़मीन पर ,
जिंदा नहीं रह पाते .
अपना ,
अपने परिवार का ,
पेट नहीं भर पाते .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें