शनिवार, 10 जून 2017

विवशता का बोझ

विवशता में किए
समझौते के दर्द को
जो सहजता से छुपा लेता है
अभिजात्य मुस्कान के
जितने सुंदर आवरण में
वह
उतना ही व्यवहारिक है /
कुशल कलाकार है /
देखने सुनने में प्राय यही आता है
समझौते के लिए विवश
गरीब होता है
कमजोर होता है
चाहे
बल से हो बुद्धि से या धन से
गुण्डत्व का बोझ
अक्सर
शरीफ   ढोता है /
शब्द बदल देने से
अर्थ ही नहीं बदलते बदलते
बदले अर्थ के प्रभाव से
परिदृश्य बदल जाते हैं
शब्दों के मकड़जाल में
अच्छे-अच्छे फंस जाते हैं/
पीठ में छुरा भोंकना
छल कपट धोखा
जब
पा जाता है नीति की संज्ञा
वंदनीय प्रशंसनीय
अनुकरणीय हो जाता है /
जो बात
धर्म कर्मकांड सांप्रदायिकता का
आडंबर होती है
वही बात
स्वार्थ के समझौते पर
सभ्यता संस्कार संस्कृति
व परंपरा बन जाती है /
यह कथन असत्य है
कि जिंदगी
पापी पेट के लिए समझौता है/
यह जाल का दाना है
फसाने का न्योता है /
वस्तुतः यह
धर्म समाज राजनेताओं का षड्यंत्र है
जिनके लिए
आदमी केवल एक खिलौना है
चाबी से चलता यंत्र है
चाहे एक तंत्र है
या कि प्रजातंत्र है /
इसलिए उठो सोचो समझो
समझौते नहीं
संघर्ष करो /
बढ़ते जाओ रुको नहीं
टूट जाओ रुको नहीं/
मरो या मारो
अपने आपको
विवशता के बोझ से उबारो/