यह जग केवल भावना ,किसने जाना सत्य
परमार्थ भी भाव है ,यह आत्म तत्त्व ही नित्य !
निश्चय भाव सब आत्मा ,जब होता है व्याप्त !
मैं हूँ या हूँ नहीं ,होते भेद समाप्त !!
द्वन्द मुक्त योगी सदा ,शांत करे विश्राम !
अर्थहीन उसके लिए ,धर्मं ,मोक्ष व काम !!
परमार्थ भी भाव है ,यह आत्म तत्त्व ही नित्य !
निश्चय भाव सब आत्मा ,जब होता है व्याप्त !
मैं हूँ या हूँ नहीं ,होते भेद समाप्त !!
द्वन्द मुक्त योगी सदा ,शांत करे विश्राम !
अर्थहीन उसके लिए ,धर्मं ,मोक्ष व काम !!
Sundar
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