शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

अहिंसा क्या कर पाती है?

मोह लोभ काम से
विक्षिप्त समाज में
अहिंसा क्या कर पाती है /
शांति के नाम पर
चादर तान सो जाती है /
जो कल्पना से संसार में जीते हैं ,
जीते रहें ,
हम झूठे आदर्शों के बोझ ,
कब तक सहें /
यूँ  तो कितने ही अवतार आये
कौन क्या कर पाये
अमर ,
राम कृष्ण ही हो पाये /
जो भी दुष्ट दमन को खड़ा होता है ,
वही अनुकरणीय बड़ा होता है /
अनुनय विनय से कब दुष्टता रूकती है /
वह शास्त्र से नहीं ,
शस्त्र से झुकती है /
उन छद्म अहिंसकों से ,
जो अपनी नपुंसकता छुपाते हैं /
हिंसक अच्छे हैं ,
जो मानवता बचाते  हैं /
यह मात्र विद्रोह नहीं
विचारणीय सवाल है ,
सतयुग से अब तक का इतिहास ,
इसकी मिसाल है /

3 टिप्‍पणियां:

  1. सर, आज मैने बहुत समय बाद हिन्दी कविता पढ़ी. मैं आपको बता नहीं सकती मुझे कितना अच्छा लगा. ये कविता पढ़ कर मुझे स्कूल के दिनों में पढ़ी हुई श्री रामधारी सिंह दिनकर की शक्ति और क्षमा याद हो आई . शुक्रिया!

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